Saturday, March 25, 2023

सनातन संस्था यूएपीए के तहत आतंकवादी संगठन नहीं बल्कि धर्म की शिक्षा देने वाली आध्यात्मिक संस्था है: बॉम्बे हाई कोर्ट

हिंदू संगठन सनातन संस्था गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक प्रतिबंधित या आतंकवादी संगठन नहीं है, बल्कि धर्म, आध्यात्मिकता और धर्म पर शिक्षा प्रदान करने वाला एक आध्यात्मिक संगठन है, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा [लीलाधर @ विजय लोधी बनाम राज्य]

जस्टिस सुनील शुकरे और कमल खाता की खंडपीठ ने, इसलिए, यूएपीए के तहत आरोपी एक विजय लोधी को जमानत दे दी, और एक विशेष अदालत के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने लोधी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।

 उच्च न्यायालय ने कहा कि विशेष अदालत के आदेश के 'दिलचस्प हिस्सों' में से एक यह था कि लोधी पर एक ऐसे संगठन के लिए काम करने का आरोप लगाया गया था जिसे केंद्र सरकार द्वारा यूएपीए के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया था।

"इस मामले का सबसे पेचीदा हिस्सा यह है कि 'सनातन संस्था' एक ऐसा संगठन है जिसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अर्थ और चिंतन के भीतर प्रतिबंधित या आतंकवादी संगठन या किसी प्रतिबंधित आतंकवादी समूह का फ्रंटल संगठन घोषित नहीं किया गया है।  , 2004,” अदालत ने देखा।

 इसने यह भी कहा कि संगठन एक पंजीकृत धर्मार्थ ट्रस्ट था जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना और जनता में धार्मिक व्यवहार को विकसित करना था।

वास्तव में 'सनातन संस्था' की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि यह एक पंजीकृत धर्मार्थ ट्रस्ट है और इसका उद्देश्य समाज में जिज्ञासुओं को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना, जनमानस में धार्मिक व्यवहार को विकसित करना और साधकों को उनके आध्यात्मिक उत्थान के लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करना है।  .  आधिकारिक वेबसाइट भी सनातन संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालती है ।  इन गतिविधियों में ऐसी पहल शामिल हैं जो समाज में आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए की जाती हैं, आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं पर नि: शुल्क व्याख्यान और मार्गदर्शन शिविर आयोजित करना और आध्यात्मिक प्रयासों में रुचि लेने के लिए, स्थानीय भाषाओं में साप्ताहिक सत्संग आयोजित करना, आध्यात्मिक विज्ञान के बारे में मार्गदर्शन करना,  कोर्ट ने कहा, 'बच्चों के लिए बाल संस्कार वर्ग/नैतिक शिक्षा वर्ग का आयोजन, धर्म/धार्मिकता आदि पर शिक्षा का संचालन करना।'
लोधी को संगठन के लिए अपने घर में कथित रूप से विस्फोटक और आग्नेयास्त्र इकट्ठा करने या तैयार करने और भंडारण करने के आरोप में महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा गिरफ्तार किया गया था।
 एटीएस ने आरोप लगाया कि आरोपी एक ऐसे संगठन का सदस्य था जिसका उद्देश्य 'हिंदू राष्ट्र' बनाना था और इसे एक साजिश के जरिए हासिल करने की कोशिश की गई थी

जिसका मतलब था:

 विस्फोटों से निपटने, आग्नेयास्त्रों के उपयोग के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित करना;

 देश को अस्थिर करना और संप्रभुता को नष्ट करना;

 फिल्मों की स्क्रीनिंग और पश्चिमी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन को रोकें।

 एटीएस ने तर्क दिया कि लोधी संगठन का सक्रिय सदस्य था और साजिश में शामिल था।

 लोधी ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि उनके और कथित साजिश के बीच कोई संबंध दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है।

 उन्होंने कहा कि एटीएस ने कथित तौर पर उनके पास से जो बम बरामद किए थे, वे वास्तव में उनके पैतृक घर से बरामद किए गए थे, जिसके लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

 अदालत को लोधी को तीन कच्चे बमों की बरामदगी के लिए प्रथम दृष्टया कोई सबूत नहीं मिला।

 "बेशक, यह घर, जिसकी पुलिस ने तलाशी ली थी, अपीलकर्ता का नहीं है और इसे अपीलकर्ता का पैतृक घर बताया गया है।  तब इस तरह की बरामदगी के लिए अभियुक्त को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि घर की तलाशी के दौरान दूसरों द्वारा पाई गई संपत्ति के स्वामित्व की संभावना से इनकार नहीं किया जाता है," अदालत ने कहा।

 यह भी अभियुक्तों द्वारा दौरा किए गए प्रशिक्षण शिविरों के अस्तित्व का कोई भौतिक प्रमाण नहीं मिला।

 यह निष्कर्ष निकालते हुए कि निचली अदालत का आदेश ग़लत था, उच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया और इसे रद्द कर दिया और आदेश दिया कि लोधी को ज़मानत पर रिहा किया जाए।  लोधी को एक जमानत के साथ 50,000 रुपये का जमानत बांड भरने का निर्देश दिया गया था।

केरल में एडवोकेट पद्मा लक्ष्मी बनी पहली ट्रांसजेंडर वकील

केरल की एक ट्रांसजेंडर महिला ने बार काउंसिल ऑफ केरल के साथ एक वकील के रूप में नामांकन कराया, जो राज्य में काला कोट धारण करने वाली पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति थी।
पद्मा लक्ष्मी को बधाई जिन्होंने जीवन की सभी बाधाओं को पार किया और केरल में पहली ट्रांसजेंडर वकील के रूप में नामांकित हुईं।  प्रथम बनना हमेशा इतिहास की सबसे कठिन उपलब्धि होती है।  लक्ष्य के रास्ते में कोई पूर्ववर्ती नहीं हैं।  बाधाएं अवश्यंभावी होंगी।  मूक और हतोत्साहित करने वाले लोग होंगे।  इन सब पर काबू पाकर पद्मा लक्ष्मी ने कानूनी इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है।
27 वर्षीय पद्मा लक्ष्मी को रविवार को बार काउंसिल ऑफ केरला में नामांकित किया गया था।  वह कहती हैं कि उनके अब तक के सफर में उनके परिवार और उनके शिक्षकों ने बेहद सहयोग दिया है।
एर्नाकुलम से दिप्रिंट से बात करते हुए, 27 वर्षीय पद्मा लक्ष्मी ने कहा, “वकालत एक महान और सम्मानजनक पेशा है.

 “(ऐसे) हमारे देश में बहुत सारे दिग्गज वकील हैं— हरीश साल्वे, प्रशांत भूषण — सभी प्रेरक लोग हैं।

 “जीवन में, विभिन्न परिस्थितियाँ और परिस्थितियाँ हैं जो हमें ध्वनिहीन कर देती हैं … मेरी आवाज़ उठाने के लिए वकालत सबसे अच्छा पेशा है।  मैं उन लोगों की आवाज बनना चाहती हूं जो अन्याय का सामना कर रहे हैं।

Friday, March 24, 2023

अधिवक्ता परिषद ब्रज जनपद सम्भल द्वारा महिला दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।


अधिवक्ता परिषद ब्रज जिला इकाई संभल महिला प्रकोष्ठ के तत्वावधान में आज दिनांक 24/03/2023 को चंदौसी जनपद न्यायालय परिसर स्थित बार सभागार में  अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अपर शासकीय अधिवक्ता श्रीमती शालिनी जी तथा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एडवोकेट नीलम वार्ष्णेय जी का माल्यापर्ण कर स्वागत  किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री गोपाल शर्मा जी एवं जिलाध्यक्ष देवेन्द्र वार्ष्णेय जी ने परिषद के विषय विस्तार से बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला संयोजिका श्रीमती रंजना शर्मा ने की तथा संचालन एड. एकता अग्रवाल ने किया। जिला संयोजिका रंजना शर्मा ने कहा कि संगठन के विस्तार के लिये अधिक से अधिक संख्या में महिला अधिवक्ताओं को जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। कार्यक्रम में कविता, गीता, दीपाली, नीतू सिंह, रजनी, आशा वार्ष्णेय, खुसबू शर्मा, रेखा राणा,साफिया कदीर, दीपा सिंह, मंजू, शालू रानी, रुखसार,  चांदनी रस्तोगी, आरती, शीतल, विष्णु शर्मा, प्रिंस शर्मा(डी जी सी- सिविल) सचिन गोयल, अमरीश अग्रवाल, अखिलेश कुमार यादव, राजीव शर्मा, राहुल चौधरी, चंद्रपाल सिंह, मनोज कठेरिया, प्रशांत मयंक, प्रवीण गुप्ता, सोनू गुप्ता, कमल पाल, विभोर बंसल, नरेंद्र सिंह, महेश पाल सैनी आदि अधिवक्ता उपस्थित रहे।

Saturday, March 11, 2023

आरटीआई के तहत सूचना नहीं देने पर लोक सूचना अधिकारियों के विरुद्ध दर्ज करा सकते हैं- एफ.आई. आर


क्या आपने कभी सूचना अधिकार कानून के दायरे से आगे निकलकर विचार किया है? मानकर चलिए कि यदि आप आरटीआई आवेदन फाइल करने के बाद भी निश्चित समय पर जानकारी नहीं पाते है या जानकारी मिले ही नहीं या अगर मिले भी तो अधूरी, भ्रामक और झूठी हो तो आप क्या करेंगे? जाहिर है आप प्रथम अपील पर जायेंगे और यदि प्रथम अपील में निराकरण नहीं हुआ तो आप सूचना आयोग में द्वितीय अपील डालेंगे।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रक्रिया के साथ-साथ आप भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के विधान के तहत भी कार्यवाही कर सकते हैं और जानकारी न देने और गलत भ्रामक जानकारी देने आरटीआई कानून का उल्लंघन करने के लिए लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी के उपर एफ आई आर भी दर्ज करवा सकते हैं?

आज हम आपको इस विषय में विस्तार से बताते हैं कि कैसे आईपीसी और सीआरपीसी का उपयोग कर पीआईओ के विरुद्ध दर्ज कराएँ एफआईआर।  किस प्रकार से यदि लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी अपने कर्तव्यों की अवहेलना करें और समयसीमा पर और सही जानकारी न उपलब्ध कराएँ तो उनके ऊपर भारतीय दंड विधान और और दंड प्रक्रिया संहिता के तहत एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है।
प्रथम अपील तक का स्तर और असद्भावना से की गयी कार्यवाहियां और दंड विधान:

अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्त ने बताया कि किन नियमों के उल्लंघन पर किन-किन धाराओं में एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है।

1. लोक सूचना अधिकारी द्वारा कोई जवाब नहीं देना धारा-7(2) आरटीआई एक्ट का उल्लंघन है। लोक सूचना अधिकारी द्वारा आरटीआई एक्ट की धारा-7(8) का उल्लंघन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए और 167 के तहत एफ आई आर होगी।

2. लोक सूचना अधिकारी द्वारा झूठी जानकारी देना जिसका प्रमाण आवेदक के पास मौजूद है उस स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 167, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज होगी।

3. प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय नहीं किये जाने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 188 के तहत एफ आई आर दर्ज कराई जा सकती है।

4. प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष लोक सूचना अधिकारी द्वारा सुनवाई के बाद सम्यक सूचना के भी गैरहाजिर रहने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 175, 176, 188, और 420 के तहत एफ आई आर दर्ज करवाई जा सकती है।

5. प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय करने के बाद भी सूचनाएं नहीं देने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 420 के तहत एफ आई आर दर्ज हो सकती है।

6. लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आवेदक को धमकाने की स्थिति में आईपीसी की धारा 506 के तहत एफ आई आर दर्ज करने का प्रावधान है।

7. लोक सूचना अधिकारी द्वारा शुल्क लेकर भी सूचना नहीं देने की स्थिति में आईपीसी की धारा 406 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज किये जाने का प्रावधान होगा।

8. लोक सूचना अधिकारी या प्रथम अपील अधिकारी द्वारा लिखित में ऐसे कथन करना जिसका झूठ होना ज्ञात हो और इससे आवेदक को सदोष हानि हो, उस स्थिति में आईपीसी की धारा 193, 420, 468, और 471 के तहत एफ आई आर दर्ज करवाई जा सकती है।

आर टी आई एक्ट के दुरुपोयोग पर पीआईओ/एफएओ पर दर्ज करवाए गए कुछ आपराधिक अभियोग निम्नलिखित है:

1. एफआईआर नंबर -124/2013 दिनांक 22.01.2013 पुलिस थाना कोटपुतली, जिला-जयपुर राजस्थान :
इस एफ आई आर में राजस्थान पुलिस के लोक सूचनाधिकारी के पास उपलब्ध सूचना को भी यह कहकर देने से इनकार किया गया था कि सूचना उपलब्ध नहीं हैं. 6 माह बाद तीसरे आवेदन में वही सूचनाएं उपलब्ध करवा दी गयी थी नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई और प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

2. एफआईआर नंबर -738/2019 दिनांक 07.09.2019, पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)
इस प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय के कर्मचारियों के साथ आपराधिक षड्यंत्र रचकर अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं में कांट-छांट करके, दस्तावेज में से सूचनाओं को मिटा कर आधी अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

3 एफआईआर नंबर -981/2013 दिनांक 10.011.2013, पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)
इस प्रकरण में राजस्थान पुलिस के लोक सूचनाधिकारी के पास उपलब्ध सूचना में से अधूरी सूचना उपलब्ध करवाई गयी थीं और आवेदक को देर रात फोन करके धमकाया गया था. नतीजा उक्त एफ आई आर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

4. एफआईआर नंबर 1006/2013 दिनांक 19.11.2013 पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)
इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के बजाय कूटरचित सूचनाएं तैयार करके आधी-अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई. प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

5. एफआईआर नंबर -76/2015 दिनांक 23.02.2015, पुलिस थाना - मॉडल टाउन जिला रेवाड़ी, हरियाणा
इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी ने अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं को छुपाया और बजाय सम्पूर्ण सूचनाओं के आधी अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी। नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

6. एफआईआर नंबर 528/2015 दिनांक 15.09.2015, पुलिस थाना मॉडल टाउन, जिला रेवारी, हरियाणा
इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के छुपाया और दुर्भावनापूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं करवाया और नाजायज अड़चन डालकर आवेदक को सदोष हानि कारित की गयी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है।

7. एफआईआर नंबर -397/2021 दिनांक 15.08.2021 पुलिस थाना- प्रागपुरा जिला-जयपुर ग्रामीण राजस्थान
इस प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी नें भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित चीनी एप कैमस्कैनर का इस्तेमाल करते हुए जो सूचनाए ई-मेल के माध्यम से उपलब्ध हुईं उनमें से अपने पूर्ववर्ती दस्तावेज में खुद के कार्यालय में हुई वित्तीय अनियमितताओं और विभागीय नियमों के विरुद्ध किये गए कृत्यों से खुद और अधीनस्थ कार्मिकों को बचाने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचकर कूटरचित पत्र (पहले वाले पत्र के पत्र क्रमांक डालकर) सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयीं जो कि कूटरचित थीं. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में अनुसन्धान में है।

 आर टी एक्ट के दुरूपयोग एवं सदोष हानि बाबत दर्ज करवाए गए कुछ अन्य आपराधिक अभियोग:

1. केस नंबर - 774/2020 दिनांक 29.06.2020 न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चुरू राजस्थान
इस मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी के बाद भी लोक सूचनाधिकारी नें कोई सूचना उपलब्ध नहीं करवाई। सम्पूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित होने से अनुसन्धान आवश्यक नहीं है लिहाजा सीधे प्रसंज्ञान की प्रार्थना के साथ न्यायालय में परिवाद दायर किया गया। मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।

2. केस नंबर 775/2020 दिनांक 29.06.2020 न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चुरू राजस्थान
इस मामले में लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में जिस सूचना का होना उपलब्ध होने से इनकार कहकर आवेदन का निस्तारण किया वह सूचना सहज ऑनलाइन सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थीं. जाहिर है कि उक्त अधिकारी नें झूठा जवाब दिया. सम्पूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित होने से अनुसन्धान आवश्यक नहीं है लिहाजा सीधे प्रसंज्ञान की प्रार्थना के साथ न्यायालय में परिवाद दायर किया गया. मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-195(1)(क)(1)/(3),(ख)(1)/(2) सहपठित धारा-340
जब सूचना आयोग के समक्ष लम्बित किसी अपील में प्रत्यर्थी/प्रथम अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी होने के बाद वह प्रतिउत्तर में दस्तावेजी साक्ष्यों के विरुद्ध झूठा अंकन करते हुए जवाब प्रेषित करे को माननीय आयोग को धारा-195(1)(क)(1)/(3), (ख)(1)/(2) सहपठित धारा-340 दंड प्रक्रिया संहिता के विधान के तहत आवेदन देकर ऐसे अपराध के लिए अभियोजन चलाने को आवेदन पेश किया जा सकता है. सूचना आयोग द्वारा ऐसे किसी भी आवेदन पर विचार करना न्यायसंगत है।

               श्री अरुण कुमार गुप्त एडवोकेट
सीनियर पैनल अधिवक्ता-केंद्रीय रेलवे अधिकरण 
      स्थायी शासकीय अधिवक्ता- उ. प्र. सरकार 
                        हाईकोर्ट प्रयागराज

Friday, March 10, 2023

Authority/Tribunal is not subordinate to High Court under Code.

Civil Procedure Code, 1908-Section 24-Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013- Sections 51 and 53-Transfer application-Transfer of case from Land Acquisition Rehabilitation and Resettlement Authority, Allahabad to any other Court of competent jurisdiction-Prayer for-Sustainability-Since LARRA is not court subordinate to High Court-Therefore, transfer application not maintainable-Rejected. 

हमें समानता का अधिकार संविधान से मिला है- श्रीमती राधा रतूड़ी

आज दिनाँक 10 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विधि भवन हॉल, जनपद न्यायालय देहरादून में अधिवक्ता परिषद उत्तराखंड, देहरादून इकाई द्वारा स्वाध्याय मण्डल का आयोजन किया गया। 
जिसमें मुख्य वक्ता श्रीमती राधा रतूडी जी (अपर मुख्य सचिव/माननीय अध्यक्ष राजस्व परिषद उत्तराखण्ड, देहरादून) जी द्वारा महिलाओं की सशक्त भूमिका एवं कार्यस्थल पर उनसे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अधिवक्ताओं को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि भारत का संविधान हम सभी को समानता का अधिकार देता है एवं महिलाओ को भी उसने उतने ही अधिकार दिए है लेकिन समाज मे जो असामनता है उसके लिए सभी को मिलकर काम करना है। महिलाओं और बेटियो के साथ अन्याय पूरे समाज के साथ अन्याय है। उन्होंने स्कूल के सिलेबस में बदलाव को भी जरूरी बताया ताकि समाज की सोच में एक बदलाव आये। 
कार्यक्रम का संचालन अधिवक्ता लक्ष्मी गुंसाई द्वारा किया गया। बैठक में अधिवक्ता आराधना चतुर्वेदी, शैल बाला, सरबजीत गांधी, मनीषा दुसेजा, किरण रावत कश्यप, जया ठाकुर व अन्य वरिष्ठ महिला अधिवक्ताओं के साथ काफी संख्या में युवा अधिवक्ता मौजूद रहे।
संवाद- रोहित श्रीवास्तव एडवोकेट, देहरादून।

Wednesday, March 8, 2023

Magistrate has jurisdiction to issue warrant to the Collector for defaulted maintenance as arrears of land revenue.









Civil Procedure Code, 1908-Section 100-Criminal Procedure Code, 1973- Sections 125(3) and 421(1)-Second appeal-Suit for declaring proceedings of revenue sale-deed as null and void-Property sold in execution of order of main- tenance passed under section 125 Cr. P.C. by issuing a warrant to Collector-To recover same as arrears of land revenue-Sustainability of order-Magistrate has power to enforce an order of maintenance under section 125, Cr. P.C. by issuing a warrant to collector to recover same as arrears of land revenue-Suit rightly dismissed-Appeal dismissed.

Existence of a valid marriage is precondition to ask for relief of restitution of conjugal rights.

Restitution of conjugal rights- Dismissal of suit- Legality- Plaintiff-appellant earlier filed a suit in which he moved an application stating that 'Saptpadi' was not conducted as per Hindu rites and rituals-He did not press the suit-In aforesaid suit, defendant respondent girl has filed a written statement-Suit dismissed as being not pressed-Thus, plaintiff omitted to sue in respect of conjugal rights-Therefore, not entitled to file fresh suit on same set of facts for restitution of conjugal rights-No illegality in impugned judgment holding present suit barred by Order II, Rule 2 (2) C.P.C.- Suit rightly dismissed-Appeal dismissed.

Marriage-Marriage certificate issued by Arya Samaj as proof of valid marirage-Held, has no statutory force.


Hindu Marriage Act, 1955-Section 9-Restitution of conjugal rights-Suit for-Dismissal-Legality-Since no proof of valid marriage-Therefore, Court below committed no error in dismissing suit-Appeal dismissed.

योगराज सिंह की शिकायत पर शासन ने लिया संज्ञान, सरकारी वकील हटाया, जांच भी शुरू कराई

मुज़फ्फरनगर। जनपद के बहुचर्चित 21  साल पुराने चौधरी जगबीर सिंह हत्याकांड में प्रदेश शासन के निर्देश पर डीएम ने सरकारी वकील को मुकदमे से हटा दिया है और उनके खिलाफ जांच भी शुरू करा दी है।
चौधरी जगबीर सिंह हत्याकांड की सुनवाई एडीजे कोर्ट नंबर 5 मुज़फ़्फ़रनगर अशोक कुमार के यहाँ चल रही है, जिसमें वादी व रिपोर्टकर्ता योगराज सिंह पूर्व मन्त्री के अधिवक्ता ठाकुर दुष्यंत सिंह ने कुछ दिन पूर्व 311 सीआरपीसी की दरखास्त न्यायालय में पेश की थी, जिसमें सरकारी वकील परविंदर कुमार ने वह दरखास्त न्यायालय के सम्मुख पेश करने से मना कर दिया था, जिसके मना करने पर वादी योगराज सिंह ने सरकारी वकील परविंदर कुमार पर मुलज़िम पक्ष से मिलने/साज ख़ाने व मुलज़िम को मुक़दमे में लाभ देने का आरोप न्यायालय के सम्मुख लगाया था।
पूर्व मंत्री ने बताया कि उन्होंने सरकारी वकील परविंदर कुमार की शिकायत ज़िलाधिकारी से की थी। तत्पश्चात् लखनऊ में प्रमुख सचिव न्याय व गृह विभाग के सचिव स्तर पर भी सरकारी वकील परविंदर कुमार की शिकायत की गई थी , जिस पर शासन द्वारा संज्ञान लेते हुए कठोर कार्रवाई करते हुए ज़िलाधिकारी मुज़फ़्फ़रनगर को निर्देश दिये गए कि तत्काल सरकारी अधिवक्ता परविंदर कुमार को इस मुक़दमे से स्थानांतरित कर दिया जाये तथा अधिवक्ता परविंदर कुमार की विभागीय जाँच के आदेश भी दिए गए।
पूर्व मंत्री ने बताया कि प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव न्याय विभाग व गृह मन्त्रालय द्वारा दिये गये निर्देश पर ज़िलाधिकारी ने त्वरित कार्रवाई करते उक्त मुक़दमे से सरकारी वकील को तत्काल हटा दिया तथा जाँच के आदेश जारी किये है ।
आपको बता दे कि चौधरी जगबीर सिंह हत्याकांड में  भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत सहित तीन को नामजद किया गया था, सुनवाई के चलते दो की मौत हो चुकी है ,अब केवल नरेश टिकैत के बारे में ही सुनवाई चल रही है ।इस मामले में अपर जिला जज के खिलाफ भी योगराज सिंह ने शिकायत की थी और मुकदमा उनकी अदालत से स्थानांतरित करने के प्रार्थनापत्र जिला जज और सुप्रीम कोर्ट में दिए थे जिन्हे अदालत ने नामंजूर कर दिए थे।
जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा ने बताया कि इस मुकदमे में अमित त्यागी सरकारी अधिवक्ता नामित है, परविंदर कुमार उनके सहयोगी है।  अभी उन्हें इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी से कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। सम्भवतः होली के अवकाश के बाद उन्हें आदेश प्राप्त हो तो उसके अनुसार कार्यवाही की जाएगी

Monday, March 6, 2023

हाईकोर्ट इलाहाबाद ने ट्रेनी लॉ क्लर्क की रिक्तियां जारी कीं

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 32 प्रशिक्षु लॉ क्लर्क की भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया है। एक बर्ष की संविदा पर इन पदों के लिये दिनाँक 06-03-2023 से दिनाँक 21-03-2023 तक ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। मानदेय/वेतनमान 25 हज़ार रुपये है। 01-07-2023 को 21-27 बर्ष के विधि स्नातक आवेदन कर सकेंगे। विस्तृत जानकारी के लिये www.allahabadhighcourt.in पर जाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्व हानि जमा करने की कोई शर्त लगाए बिना आरोपी को अग्रिम जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट: उत्तराखंड माल और सेवा कर की धारा 70 के तहत उपायुक्त राज्य (जीएसटी) द्वारा जारी किए गए समन के संबंध में अपीलकर्ता/अभियुक्त की अग्रिम जमानत को खारिज करते हुए उत्तरांचल उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश से उत्पन्न एक अपील में/  सेंट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स एक्ट, 2017 ('जीएसटी एक्ट'), कृष्ण मुरारी और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, जेजे की खंडपीठ।  अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा सुझाए गए किसी भी शर्त को लागू किए बिना आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी और उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया।

 अभियुक्त ने प्रस्तुत किया कि चूंकि जीएसटी अधिनियम की धारा 132 एक अवधि के लिए सजा का प्रावधान करती है जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और पूरा मामला दस्तावेजी साक्ष्य और अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर आधारित है जो रिकॉर्ड में उपलब्ध हैं, इस प्रकार अपीलकर्ता को किसी भी अपराध के लिए आवश्यक नहीं है।  हिरासत में पूछताछ।

 प्रतिवादी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अग्रिम जमानत देने की प्रार्थना का पुरजोर विरोध किया और कहा कि राजस्व के हित की रक्षा के लिए, आरोपी को रुपये के राजस्व नुकसान का कम से कम आधा जमा करने का निर्देश देकर शर्तों पर रखा जा सकता है।  जांच के दौरान कई रूपों के लिए नकली चालान प्रदान करके राज्य के खजाने को 14.68 करोड़ रुपये का खुलासा किया गया है।

 अदालत ने सुभाष चौहान बनाम भारत संघ, 2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 110 का संज्ञान लिया, जिसमें अदालत ने अभियुक्त को जमानत देते समय जमा की शर्त लगाने के उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया था।  इसके अलावा, अदालत ने कहा कि उक्त मामले में, राज्य की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने निष्पक्ष रूप से कहा था कि जमानत देते समय ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती है।  अनतभाई अशोकभाई शाह बनाम गुजरात राज्य, आपराधिक अपील संख्या 523/2023 में न्यायालय द्वारा इसी दृष्टिकोण की पुष्टि की गई है।

 न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्य पूर्वोक्त दो आपराधिक अपीलों के तथ्यों के समान होने के कारण, उपरोक्त दो मामलों में लिए गए दृष्टिकोण से विचलित होने का कोई कारण नहीं है।

 अदालत ने कहा कि अभियुक्त अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा सुझाए गए किसी भी शर्त को लागू किए बिना अग्रिम जमानत पाने का हकदार है।  इस प्रकार, इसने उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया।

Sunday, March 5, 2023

स्टाम्प की कमी- मूल्यांकन काल्पनिक तरीके से किया गया-पुनर्मूल्यांकन के लिये वापस किया

भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899-धारा 47-ए, 56 (1) और अनुच्छेद 23 (ए), अनुसूची 1 (बी) - स्टाम्प की कमी-स्टांप शुल्क के भुगतान के उद्देश्य से संबंधित संपत्ति का आकलन-याचिकाकर्ता द्वारा खरीदी गई प्रश्न में संपत्ति  यूपी द्वारा आयोजित एक बोली में।  15,00,000 की राशि पर वित्तीय निगम-ग्रामीण क्षेत्र में स्थित विचाराधीन संपत्ति-कलेक्टर ने प्रश्नगत संपत्ति का मूल्यांकन 7,000 प्रति वर्ग मीटर की दर से किया-याचिकाकर्ता द्वारा बिक्री-विलेख के निष्पादन और नीलामी की कार्यवाही के समय कोई साक्ष्य नहीं दिया गया-दर  कोल्ड स्टोरेज की भूमि 7,000 प्रति वर्ग मीटर से कम थी - प्रश्नगत भूमि के निर्धारण में कलेक्टर द्वारा कोई अवैधता नहीं की गई - हालांकि कोल्ड स्टोरेज और बिल्डिंग प्लांट और मशीनरी की कीमत काल्पनिक तरीके से मूल्यांकित की गई - इसलिए, कलेक्टर और सी.सी.आर.ए. का आदेश।  इस संबंध में मैन्टेनेबल नहीं-निरस्त किया जाता है-मामले को नए निर्णय के लिए वापस भेज दिया गया है, विशेष रूप से कोल्ड स्टोरेज, संयंत्र और मशीनरी के भवनों के कानून के अनुसार मूल्यांकन के संबंध में- याचिका का निस्तारण किया गया।  

पूर्व में दी गयी जमानत को कोई अन्य केस में नामजद हो जाने पर खारिज नहीं किया जा सकता- केरल उच्च न्यायालय


अभियुक्त के खिलाफ बाद में मामला दर्ज करने और पहले के मामले में दी गई जमानत पर इसके प्रभाव से संबंधित एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु पर निर्णायक रूप से फैसला सुनाया।

एक अपराध में दी गई जमानत को सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया जाए कि आरोपी ने जमानत की शर्तों के कथित उल्लंघन में खुद को बाद के अपराध में उलझा लिया?

केरल उच्च न्यायालय वास्तव में प्रासंगिक केस कानूनों के साथ कुछ सबसे तर्कसंगत कारणों को अग्रेषित करने में काफी विश्लेषणात्मक रहा है। अभियुक्त के खिलाफ केवल बाद के मामले को दर्ज करने से पहले के मामले में स्वत: जमानत रद्द नहीं हो सकती है।  

यह कोई पुनरावृत्ति नहीं है कि सभी अदालतों को निश्चित रूप से इस प्रमुख मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इतनी सुंदरता, वाक्पटुता और प्रभावी ढंग से जो कुछ भी निर्धारित किया है, उस पर ध्यान देना चाहिए।  इससे इनकार नहीं!


Saturday, March 4, 2023

अधिवक्ताओं की सुरक्षा: राजस्थान हाईकोर्ट ने उचित कानून बनने तक दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करने पर राज्य से जवाब मांगा

राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर खंडपीठ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) में हाल ही में राज्य से जवाब मांगा है कि विधायिका द्वारा उचित कानून बनाए जाने तक अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार किया जाए।  कोर्ट ने अपने सचिव के माध्यम से बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) से भी सहायता मांगी और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए इस मामले में उचित सुझाव देने के लिए कहा।  कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपमन की खंडपीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता के विद्वान वकील प्रस्तुत करेंगे कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह न्यायालय विधायिका द्वारा उचित कानून बनाए जाने तक दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकता है।  हम भारत संघ, राज्य सरकार और बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के लिए पेश होने वाले विद्वान वकील से अनुरोध करेंगे कि वे इस पहलू पर सुनवाई की अगली तारीख पर अपनी प्रतिक्रिया दें।"

 

The moratorium period having been passed- release application is maintainable.

U.P. Urban Buildings (Regulation of Letting, Rent and Eviction) Act, 1972- Section 21(1)(a)-Release application-Maintainability of-Landlord, a subsequent purchaser moved application before completing six months after service of notice-Held, property was purchased by present landlord much earlier-Tenant had admitted himself as tenant of present landlord-Release application was filed in April, 2012 whereas the notice was sent by registered post on 8.3.2011 and delivered on 10.3.2011-No fault with the findings of Trial Court regarding service of notice-No objection as to the plea of six month's no- tice was taken by tenant in the objection/written statement-Tenant would be taken to have waived his right of protest-Moratorium of three years period had already expired as the property was purchased by present landlord in year 2001-Judgment of appellate court rejecting the release application as barred under section 21(1) of Act, 1972 set aside-Writ petition allowed

अधिकृत बैंक कर्मचारी द्वारा सिक्योर्ड संपत्ति का कब्जा लेने के लिए संपत्ति परिसर में प्रवेश "हाउस ट्रेसपास" के अंतर्गत नहीं आता है: कलकत्ता उच्च न्यायालय


कलकत्ता उच्च न्यायालय: आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से संबंधित एक मामले का फैसला करते हुए, राय चट्टोपाध्याय*, जे., ने कहा कि अधिकृत बैंक कर्मचारी कब्जा लेने के लिए सुरक्षित संपत्ति परिसर में प्रवेश कर सकता है और यह विवरण के दायरे में नहीं आएगा  दंड संहिता, 1860 की धारा 442 के तहत प्रदान किया गया "गृह अतिचार"।

केस के तथ्य

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता आवास विकास वित्त निगम लिमिटेड (एचडीएफसी लिमिटेड) के कर्मचारी हैं और निगम के साथ "सहायक प्रबंधक - वसूली" के रूप में कार्यरत हैं।  14-01-2015 को, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ विरोधी पक्ष संख्या 2 द्वारा एक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें गृह अतिचार (आईपीसी की धारा 448 ), आपराधिक धमकी (आईपीसी की धारा 506 ) और इस तरह के अपराध के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था।  उनके सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने के लिए और उनके खिलाफ एक पुलिस मामला शुरू किया गया।  एस.एस. के तहत आपराधिक कार्यवाही।  आईपीसी की धारा 448, 506, 114 और 34 न्यायालय के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीपुर के समक्ष लंबित है।  उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही से व्यथित, याचिकाकर्ताओं ने उनके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अदालत के समक्ष एक पुनरीक्षण को प्राथमिकता दी।

पक्षकार के तर्क

 याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही में स्पष्ट रूप से दुर्भावना के साथ भाग लिया गया था, दुर्भावनापूर्ण रूप से प्रतिशोध और निजी और व्यक्तिगत द्वेष के एक गुप्त उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया था, जो कानून के अनुसार निंदनीय होगा।  याचिकाकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए काम किया है क्योंकि कंपनी के जिम्मेदार और अधिकृत अधिकारी को वैधानिक प्रावधानों के अनुसार करना चाहिए।

 याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि विरोधी पक्ष नंबर 2 का मकान मालिक याचिकाकर्ताओं के नियोक्ता के साथ कर्जदार है और कर्ज का डिफाल्टर है।  याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि एक किरायेदारी के तहत विरोधी पक्ष संख्या 2 के कब्जे को "सुरक्षित संपत्ति" के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिसके संबंध में कंपनी ने सुरक्षा हित बनाया है।  याचिकाकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि उधारकर्ता के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय SERFAESI अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत एक अपील है और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही नहीं है।

 विरोधी पक्ष संख्या 2 ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने उसे किराए के परिसर से बेदखल करने और बेदखल करने के लिए धमकी, हिंसा और बल का प्रयोग किया, इसके अलावा, उन्होंने उसके किराए के परिसर में भी प्रवेश किया और अपने सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने के लिए धमकी और डराने-धमकाने का काम किया।  विरोधी पक्ष संख्या 2 ने तर्क दिया कि वह कानूनी रूप से परिसर पर कब्जा कर रही है और अवैध रूप से और उसी परिसर से जबरन बेदखल किए जाने को लेकर आशंकित है।

न्यायालय का अवलोकन

 यह निर्धारित करने के लिए कि क्या याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई संज्ञेय मामला बनता है, अदालत ने आपराधिक न्यायशास्त्र के प्रमुख सिद्धांतों पर गौर किया और महाराष्ट्र राज्य बनाम मेयर हंस जॉर्ज, एआईआर 1965 में एक्टस नॉन फेसिट रीम निसी मेन सिट री के सिद्धांत पर चर्चा की।  SC 722 और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध, इरादे, चोट, गलत नुकसान, गलत लाभ की परिभाषा।

 न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को संज्ञेय अपराध के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराने के लिए;  याचिकाकर्ताओं के पास दूसरों की किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करने और उसमें रहने वालों को डराने-धमकाने का इरादा और ज्ञान होना चाहिए, और उन्हें उसी इरादे और ज्ञान से डराना भी चाहिए।  न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत संपत्ति बैंक के पास सुरक्षित संपत्ति थी और बैंक ने उस पर कब्जा करने के लिए पहले ही कानूनी औपचारिकताओं को पूरा कर लिया है, इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं ने अवैध प्रविष्टि की है।

 स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम वी. नोबेल कुमार, (2013) 9 SCC 620 पर भरोसा करते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को स्वीकार किया कि उधारकर्ता के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय SERFAESI अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत एक अपील है न कि  याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही।

 न्यायालय ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से यह प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता, बैंक का एक कर्मचारी, जो अपने सदाशयी कर्तव्य का निर्वहन कर रहा है, ने कानून द्वारा उसे दी गई शक्ति का प्रयोग करने के लिए सुरक्षित संपत्ति के परिसर में प्रवेश किया है और  उसकी ओर से किसी कार्य या मनःस्थिति के अभाव में, उसे अपने कार्य के निर्वहन के लिए आपराधिक दायित्व के अधीन नहीं किया जा सकता है।

 "...याचिकाकर्ता, जिसने अपने वास्तविक कर्तव्य का निर्वहन करते हुए, बैंक का कर्मचारी होने के नाते, जो वास्तव में एक सुरक्षित लेनदार है, कानून द्वारा निहित शक्ति के प्रयोग में सुरक्षित संपत्ति/संपत्ति के परिसर में प्रवेश किया है, नहीं हो सकता  इस मामले में उसके खिलाफ कथित तौर पर, उस कार्य के निर्वहन में, किसी भी अधिनियम पुन: या मानसिक कारण के अभाव में आपराधिकता के दायित्व से उलझा हुआ है।

न्यायालय का निष्कर्ष

 याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए, अदालत ने कहा कि न तो कथित अपराध के तत्व उपलब्ध हैं और न ही याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला बनाया जा सकता है।

सामूहिक धर्मांतरण मामला: सुप्रीम कोर्ट ने SHUATS के वाइस चांसलर और डायरेक्टर की गिरफ्तारी पर लगाई रोक


सुप्रीम कोर्ट: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका में, जिसमें अदालत ने सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज ('SHUATS') के कुलपति डॉ. राजेंद्र बिहारी लाल और कुलपति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी।  संस्थान के निदेशक विनोद बिहारी लाल को दंड संहिता, 1860 की धारा 153-ए, 506, 420, 467, 468, 471 और धारा 3 और 5(1) यू.पी.  धर्म परिवर्तन का निषेध अधिनियम, 2021, डॉ डी वाई चंद्रचूड़, सीजेआई, पीएस नरसिम्हा और जे.बी पर्दीवाला, जेजे की पूर्ण पीठ।  डॉ. राजेंद्र बिहारी लाल और विनोद बिहारी लाल की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी प्रभावशाली व्यक्ति हैं जो बड़े पैमाने पर धर्मांतरण में शामिल हैं, और जैसा कि इस संबंध में सबूत पहले ही जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए जा चुके हैं, इसलिए, वे अन्य व्यक्तियों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं जिन्हें अग्रिम जमानत पर रिहा किया गया है।  इसके अलावा, अभियुक्त व्यक्तियों ने अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया है, जो कि किसी अन्य लंबित मामले में उन्हें सुरक्षा प्रदान करते समय एक शर्त थी, इसलिए, जैसा कि दावा किया गया है, वे राहत के हकदार नहीं हैं।  इससे क्षुब्ध होकर अभियुक्तों ने वर्तमान याचिका दायर की है।

न्यायालय ने वर्तमान विशेष अनुमति याचिका में नोटिस जारी किया और सुनवाई की अगली तारीख तक आरोपी व्यक्तियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

मामले की अगली सुनवाई 24-03-2023 को की जाएगी।

Friday, March 3, 2023

सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि दस साल के अनुभव वाले वकीलों को राज्य/जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष और सदस्य के रूप में भी नियुक्त किया जा सकता है


सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि स्नातक की डिग्री रखने वाले और कानून, उपभोक्ता मामलों, सार्वजनिक मामलों आदि में दस साल का पेशेवर अनुभव रखने वाले व्यक्तियों को राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य और अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य माना जाना चाहिए।

जस्टिस एमआर शाह और एमएम सुंदरेश की खंडपीठ द्वारा फैसला पारित किया गया था और लिखित परीक्षा की आवश्यकता के संबंध में, खंडपीठ ने कहा कि आयोग अर्ध न्यायिक प्राधिकरण हैं और इसके लिए नियुक्ति का मानक न्यायाधीश की नियुक्ति के समान होना चाहिए और  2020 के नियम उम्मीदवारों की योग्यता का आकलन करने के लिए लिखित परीक्षाओं पर विचार नहीं करते हैं।

खंडपीठ ने राज्य और केंद्र सरकारों को 2020 के नियमों में निम्नलिखित संशोधन करने का भी निर्देश दिया जो हैं: -

2020 नियम 2020 और विशेष रूप से नियम 6(9) में संशोधन करें।

नियुक्ति 100 अंकों के दो पेपरों की लिखित परीक्षा और वाइवा के लिए 50 अंकों के प्रदर्शन के आधार पर की जाएगी।

इन निर्देशों के साथ, बॉम्बे हाई कोर्ट ने उपभोक्ता संरक्षण नियम 2020 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया।

खंडपीठ ने उस प्रावधान को भी रद्द कर दिया जो राज्य की चयन समिति को राज्य सरकारों के लिए योग्यता के क्रम में नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करने की अपनी प्रक्रिया निर्धारित करने की शक्ति देता है।

Court Imposes Rs. 10,000/- Cost For Filing Affidavit WithoutDeponent's Signature, DirectsRemoval Of OathCommissioner For Fraud:Allahabad High Court

Allahabad Hon'ble High Court (Case: CRIMINAL MISC. BAIL APPLICATION No. 2835 of 2024) has taken strict action against an Oath Commission...