अगर किसी एक आदमी के अधिकारों का हनन हो रहा है तो उसे निजी अर्थात निजी हित का लिटिगेशन माना जाएगा और अगर ज्यादा लोग या कहें कि आम जनों के हित प्रभावित हो रहे हैं और निम्नवर्णित मामलो में याचिका योजित करें तो उसे जनहित याचिका माना जाएगा।
मौलिक अधिकारों या कानूनों द्वारा गारंटीकृत किसी अन्य कानूनी अधिकार का उल्लंघन;
गरीबों के बुनियादी मानवाधिकारों के (उल्लंघन) मामलों में;
यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकारी अधिकारी या नगरपालिका अधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन करें;
सरकारी नीति के संचालन के लिए।
जनहित याचिका डालने वाले व्यक्ति को अदालत को यह बताना होगा कि कैसे उस मामले में आम लोगों का हित प्रभावित हो रहा है। दायर की गई याचिका जनहित है या नहीं, इसका फैसला कोर्ट ही करता है। इसमें सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट सरकार को उचित निर्देश जारी करती हैं।
पत्र द्वारा भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा सकती है। यदि कोर्ट को लगता है कि ये जनहित से जुड़ा मामला है तो पत्र को ही जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया जा सकता है और सुनवाई होती है। ऐसे पत्र में बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनहित से जुड़ा है। अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भी पत्र के साथ लगा सकते हैं। पत्र जनहित याचिका में तब्दील होने के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी होता है और याचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है। अगर याचिकाकर्ता के पास वकील न हो तो कोर्ट मुहैया कराती है। हाईकोर्ट चीफ जस्टिस के नाम भी लेटर लिखा जा सकता है।
दूसरा तरीका ये है कि अधिवक्ता के माध्यम से जनहित याचिका दायर की जा सकती है। अधिवक्ता याचिका तैयार करने में मदद करता है। याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरह उसे ड्रॉफ्ट किया जाएगा, इन बातों के लिए अधिवक्ता की मदद जरूरी है। जनहित याचिका दायर करने के लिए कोई फीस नहीं लगती। इसे सीधे काउंटर पर जाकर जमा करना होता है। जनहित याचिका ऑनलाइन दायर नहीं की जा सकती।
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भारत में जस्टिस पीएन भगवती को जनहित याचिका का जनक माना जाता है जिन का 16 जून 2017 को 95 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था वह भारत के 17 वें मुख्य न्यायाधीश थे। भारत में जनहित याचिका की शुरुआत 1980 में हुई।
कुशलपाल चौहान की समस्या का समाधान हो गया
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