सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (06.10.2023) को कहा कि किसी दस्तावेज का महज रजिस्ट्रेशन होना उसकी वास्तविकता का अचूक अनुमान जोड़कर उसे किसी भी संदेह से मुक्त नहीं कर देगा। शीर्ष अदालत एक संपत्ति विवाद पर विचार कर रही थी, जिसमें वसीयत की वैधता और वैधानिकता पर सवाल उठाया गया था। कई अपीलों के बाद मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा। ट्रायल कोर्ट ने माना था कि वसीयत के रजिस्ट्रेशन के बावजूद उसका वैध निष्पादन साबित नहीं हुआ है। अपने दूसरे अपीलीय क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट ने माना था कि केवल वसीयत का रजिस्ट्रेशन इसके आसपास की संदिग्ध परिस्थितियों को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की और हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि करते हुए कहा: “…ट्रायल कोर्ट ने सही राय दी कि वसीयत का केवल रजिस्ट्रेशन ही इसकी वैधता साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि इसके वैध निष्पादन को आवश्यक रूप से भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 68 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 63 के अनुसार साबित किया जाना चाहिए।"
शीर्ष अदालत ने पाया कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 68 (कानून द्वारा प्रमाणित किए जाने वाले दस्तावेज़ के निष्पादन का प्रमाण) और धारा 71 (जब साक्ष्य प्रमाणित करने वाला गवाह निष्पादन से इनकार करता है तो सबूत) और धारा 63 (अप्रशिक्षितों का निष्पादन) के तहत आवश्यक कानूनी आवश्यकताएं हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के वसीयत) को प्रश्नगत वसीयत के निष्पादन को साबित करने के लिए स्थापित नहीं किया गया था।
कोर्ट ने कहा, "साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 में उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63 के संदर्भ में वसीयत के निष्पादन को साबित करने के लिए कम से कम एक गवाह की आवश्यकता होती है।" हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में यह आवश्यकता पूरी नहीं हुई है। न्यायालय ने यह भी देखा कि साक्ष्य देने वाले दो गवाहों के बयानों से पता चलता है कि वे एक ही पृष्ठ पर नहीं थे। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि करते हुए अपील खारिज कर दी। चूंकि मामले में अपीलकर्ता उत्तराधिकार अधिनियम और साक्ष्य अधिनियम के तहत कानूनी आवश्यकताओं के संदर्भ में वसीयत के निष्पादन को साबित करने में विफल रहा, इसलिए प्रतिवादी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 के तहत बिना वसीयत उत्तराधिकार के संपत्तियों पर कब्जा करने का हकदार होगा।
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