Sunday, September 4, 2022

निजी स्कूल के शिक्षक भी होंगे ग्रेच्युटी के हकदार-सुप्रीम कोर्ट

निजी स्कूल के शिक्षक भी होंगे ग्रेच्युटी के हकदार, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि "संशोधन समानता लाने और शिक्षकों के साथ उचित व्यवहार करने का प्रयास करता है।  इसे शायद ही एक मनमाना और उच्चस्तरीय अभ्यास के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।"
पीएजी अधिनियम 16 सितंबर, 1972 से लागू है। इसका लाभ उन कर्मचारियों को मिलता है जिसने अपनी सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या किसी भी कारण से संस्थान छोड़ने से पहले वहां कम से कम 5 साल तक निरंतर नौकरी की है।

प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों के लिए अच्छी खबर (Good news for teachers of private schools)आई है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने सभी प्राइवेट स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे शिक्षकों को छह सप्ताह के भीतर 3 अप्रैल 1997 से पहले की सेवा के लिए ब्याज सहित ग्रेच्युटी का भुगतान करें। इस मामले में मंगलवार, 30 अगस्त को आए फैसले में अदालत ने कर्मचारी के दायरे में शिक्षकों सहित ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 में संसद के संशोधन की वैधता को सही ठहराया और निजी स्कूलों के लिए पात्र लोगों को ग्रेच्युटी का भुगतान करना अनिवार्य (It is mandatory for private schools to pay gratuity to eligible people)कर दिया है।

अहमदाबाद निजी प्राथमिक शिक्षक संघ से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कानून संबंधी दोष का हवाला देते हुए यह आदेश दिया। पीठ ने निजी स्कूलों को छह सप्ताह में अधिनियम के तहत कर्मचारियों/ शिक्षकों को ब्याज सहित ग्रेच्युटी का भुगतान करने का आदेश जारी किया है। बता दें कि इंडिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है।
निजी स्कूलों और उनसे जुड़ी संस्थाओं से संशोधन की चुनौती को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि कर्मचारी के लिए ग्रेच्युटी उसके द्वारा दी जा रही सेवाओं की न्यूनतम शर्तों में से एक है। बता दें कि इससे पहले कुछ निजी स्कूलों का दावा था कि पीएजी अधिनियम की धारा 2 (ई) में के तहत शैक्षणिक संस्थानों या स्कूलों में जो शिक्षक कार्य कर रहे हैं वो कर्मचारी की श्रेणी में नहीं आते हैं। अदालत ने इस दावे को खारिज कर दिया है।

अदालत ने कहा कि कर्मचारी/शिक्षक पीएजी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अपना भुगतान पाने के लिए अपने सही फोरम का इस्तेमाल कर सकते हैं। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के फैसले में बताए गए संशोधन को लाने और दोष को दूर करने के लिए विधायी अधिनियम को बरकरार रखा।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि निजी स्कूलों का यह कहना कि उनकी क्षमता ग्रेच्युटी देने की नहीं है, तो यह अनुचित है। पीएजी अधिनियम सहित अन्य कानूनों का पालन करने के लिए सभी प्रतिष्ठान बाध्य हैं।

बता दें कि इससे पहले प्राइवेट स्कूलों ने ग्रेच्युटी न देने को लेकर कई उच्च न्यायालयों में अपील की थी। उन्हें दिल्ली, पंजाब और हरियाणा, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बॉम्बे और गुजरात हाईकोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद स्कूलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर अलग से चुनौती दी गई थी। जहां उन्हें निराशा ही हाथ लगी है।

5 साल नौकरी के बाद..

पीएजी अधिनियम 16 सितंबर, 1972 से लागू है। इसका लाभ उन कर्मचारियों को मिलता है जिसने अपनी सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या किसी भी कारण से संस्थान छोड़ने से पहले वहां कम से कम 5 साल तक निरंतर नौकरी की है। 3 अप्रैल, 1997 को श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के जरिए इस अधिनियम को दस या उससे अधिक कर्मचारियों वाले शैक्षणिक संस्थानों पर भी अमल में लाया गया था। ऐसे में ये अधिनियम निजी स्कूलों पर भी लागू होते हैं।

केस टाइटल - इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन आफ इंडिया एवं अन्य बनाम भारत संघ आदि
सिविल अपील सं० - 8162/2012

रिपोर्ट: अरुण कुमार गुप्त अधिवक्ता उच्च न्यायालय प्रयागराज

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