प्रदीप कुमार नामक शख्स ने एलआईसी से जीवन सुरक्षा योजना पॉलिसी 14 अक्टूबर 2011 को ली। इसके तहत 3.75 लाख रुपये बीमा रकम थी और एक्सिडेंट डेथ के केस में अतिरिक्त 3.75 लाख रकम भुगतान का करार था। छह महीने में किश्त का भुगतान करना था। अगली किश्त 14 अक्टूबर 2011 को देना था लेकिन किश्त का भुगतान नहीं किया गया। और इस तरह से किश्त भुगतान में डिफॉल्ट हुआ। इसके बाद 6 मार्च 2012 को प्रदीप कुमार का एक्सिडेंट हुआ और बाद में 21 मार्च 2012 को उनकी मौत हो गई। लेकिन एक्सिडेंट के बाद ही 9 मार्च 2012 को उनकी तरफ से बकाये प्रीमियम का भुगतान कर दिया गया। एलआईसी ने शिकायती के पति की मौत के बाद शिकायती को बीमा रकम 3 लाख 75 हजार रुपये का भुगतान कर दिया लेकिन एक्सिडेंट बेनिफिट का दावा रिजेक्ट कर दिया और कहा कि जिस तारीख यानी 9 मार्च 2011 को एक्सिडेंट हुआ था उस तारीख को प्रीमियम भुगतान न किए जाने के कारण पॉलिसी लैप्स कैंडिशन में थी।
एलआईसी ने एक्सिडेंट बेनिफिट क्लेम देने से इनकार कर दिया जिसके बाद मृतक की पत्नी ने जिला उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया। जिला उपभोक्ता अदालत ने एलआईसी को निर्देश दिया कि वह एक्सिडेंट दावा का भी भुगतान करे। मामला स्टेट कंज्यूमर फोरम में गया और वहां एलआईसी की दलील स्वीकार कर ली गई जिसके बाद शिकायती ने नैशनल कंज्यूमर फोरम का दरवाजा खटखटाया और नैशनल कंज्यूमर फोरम ने जिला फोरम के आदेश को बरकरार रखा और एलआईसी की अर्जी खारिज कर दी और एक्सिडेंट बेनिफिट के भुगतान का आदेश दिया लेकिन इस फैसले के एलआईसी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या व्यवस्था दी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किश्त भुगतान की तारीख 14 अक्टूबर 2011 को थी लेकिन भुगतान नहीं किया गया और 6 मार्च 2012 को एक्सिडेंट हुआ और 9 मार्च को जब बकाये किश्त का भुगतान किया गया तो एलआईसी को एक्सिडेंट के बारे में नहीं बताया गया और यह सब जानबूझकर गलत इरादे से किया गया। एलआईसी पॉलिसी की शर्तों में कहा गया है कि जब एक्सिडेंट होगा तब पॉलिसी जारी रहनी चाहिए लेकिन इस मामले में 14 अक्टूबर 2011 को किश्त भुगतान नहीं किए जाने के कारण पॉलिसी लैप्स कंडिशन में थी और 6 मार्च 2012 को जब एक्सिडेंट हुआ तो पॉलिसी प्रभाव में नहीं था। ऐसे में शिकायती का एक्सिडेंट बेनिफिट का दावा सच्चाई वाला नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक्स्ट्रा बेनिफिट के तौर पर एक्सिडेंट क्लेम नहीं मिल सकता क्योंकि जिन दिन एक्सिडेंट हुआ उस दिन पॉलिसी फोर्स में नहीं था। पॉलिसी 14 अक्टूबर 2011 से लैप्स कंडिशन में था और 6 मार्च 2012 को घटना वाले दिन फोर्स में नहीं था ऐसे में एक्सिडेंट बेनिफिट का एक्स्ट्रा क्लेम नहीं मिेलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कंज्यूमर फोरम के फैसले को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किश्त भुगतान की तारीख 14 अक्टूबर 2011 को थी लेकिन भुगतान नहीं किया गया और 6 मार्च 2012 को एक्सिडेंट हुआ और 9 मार्च को जब बकाये किश्त का भुगतान किया गया तो एलआईसी को एक्सिडेंट के बारे में नहीं बताया गया और यह सब जानबूझकर गलत इरादे से किया गया। एलआईसी पॉलिसी की शर्तों में कहा गया है कि जब एक्सिडेंट होगा तब पॉलिसी जारी रहनी चाहिए लेकिन इस मामले में 14 अक्टूबर 2011 को किश्त भुगतान नहीं किए जाने के कारण पॉलिसी लैप्स कंडिशन में थी और 6 मार्च 2012 को जब एक्सिडेंट हुआ तो पॉलिसी प्रभाव में नहीं था। ऐसे में शिकायती का एक्सिडेंट बेनिफिट का दावा सच्चाई वाला नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक्स्ट्रा बेनिफिट के तौर पर एक्सिडेंट क्लेम नहीं मिल सकता क्योंकि जिन दिन एक्सिडेंट हुआ उस दिन पॉलिसी फोर्स में नहीं था। पॉलिसी 14 अक्टूबर 2011 से लैप्स कंडिशन में था और 6 मार्च 2012 को घटना वाले दिन फोर्स में नहीं था ऐसे में एक्सिडेंट बेनिफिट का एक्स्ट्रा क्लेम नहीं मिेलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कंज्यूमर फोरम के फैसले को खारिज कर दिया।
No comments:
Post a Comment