Friday, September 10, 2021

सरकारी कब्जे से मुक्त हों हिंदुओं के मंदिर, सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए एक समान कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

भारत संविधान से चलता है माने कि सभी के लिए विधान यानी कि कानून सबके लिए समान है, लेकिन विडंबना देखिए एक भी मजार, एक भी दरगाह, एक भी मस्जिद सरकार के कंट्रोल में नहीं है, एक भी चर्च सरकार के कंट्रोल में नहीं हैं, लेकिन 4 लाख मंदिर सरकार के कंट्रोल में हैं. इसी भेदभाव को समाप्त करने और सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए एक समान कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चाचिका दाखिल की गई है. यह याचिका बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दायर की है. उपाध्याय की ओर दाखिल अर्जी में केंद्र सरकार के होम मिनिस्ट्री, लॉ मिनिस्ट्री और देश भर के तमाम राज्यों को प्रतिवादी बनाया गया है।

अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन कम्युनिटी को धार्मिक स्थलों के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिलना चाहिए जैसा कि मुस्लिम, पारसी और क्रिश्चियन को मिला हुआ है. याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक संस्थानों और स्थलों के रखरखाव और मैनजमेंट राज्य सरकार के हाथों में है और इसके लिए जो कानून बनाया गया है उसे खारिज किया जाए क्योंकि ये कानून संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है।

याचिकार्कता के मुताबिक वर्तमान कानून के मुताबिक राज्य सरकारें हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक स्थलों को कंट्रोल करता है. इसके लिए सबसे पहले अंग्रेज ने 1863 में कानून बनाया था और इसके तहत मंदिर, मठ सहित हिंदुओं, सिख, जैन व बौद्ध के धार्मिक स्थलों के कंट्रोल को सरकार के हाथ में दे दिया था. इसके बाद से दर्जनों कानून और भी बने जिसके तहत हिंदुओं, सिख, बौद्ध और जैन के धार्मिक स्थल व संस्थानों के मैनेजमेंट और रखरखाव सरकार के हाथ में है. मौजूदा कानून के तहत राज्य सरकार के अधिकार में तमाम मंदिर, गुरुद्वारा आदि का कंट्रोल है लेकिन मुस्लिम, पारसी और क्रिश्चियन के धार्मिक स्थल का कंट्रोल सरकार के हाथों में नहीं है. सरकारी कंट्रोल के कारण मंदिर, गुरुद्वारा आदि की स्थिति कई जगह खराब है।

दरअसल, हिंदू रिलिजियस चैरिटेबल एनडोमेंट्स एक्ट के तहत राज्य सरकार को इस बात की इजाजत है कि वह मंदिर आदि का वित्तीय और अन्य मैनेजमेंट अपने पास रखे. इसके लिए राज्य सरकार का डिपार्टमेंट है और मंदिर आदि का मैनेजमेंट अपने पास रखते हैं. उपाध्याय ने अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है और अनुच्छेद-15 कानून के सामने भेदभाव को रोकता है. लिंग, जाति, धर्म और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं हो सकता. वही अनुच्छेद-25 धार्मिक स्वतंत्रता की बात करता है और अनुच्छेद-26 गारंटी देता है कि तमाम समुदाय के लोग अपने संस्थान का रखरखाव और मैनेजमेंट करेंगे. लेकिन राज्य के कानून के कारण हिंदू, सिख, जैन और बौध इस संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं।

याचिका में गुहार लगाई गई है कि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिले जैसा कि मुस्लिम आदि को मिला हुआ है. साथ ही हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के लिए चल व अचल संपत्ति बनाने का भी अधिकार मिले. यह भी गुहार लगाई गई है कि अभी मंदिर आदि को कंट्रोल करने के लिए जो कानून है उसे खारिज किया जाए. साथ ही केंद्र व लॉ कमिशन को निर्देश दिया जाए कि वह कॉमन चार्टर फॉर रिलिजियस एंड चैरिटेबल इंस्टीट्यूट के लिए ड्राफ्ट तैयार करे और एक यूनिफॉर्म कानून बनाए।

अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भारत में एक भी मजार, एक भी दरगाह, एक भी मस्जिद सरकार के कंट्रोल में नहीं है, एक भी चर्च सरकार के कंट्रोल में नहीं हैं, लेकिन 4 लाख मंदिर सरकार के कंट्रोल में हैं. 1863 में अंग्रेजों ने मंदिरों पर नियंत्रण के लिए पहला कानून बनाया था जिसके कहते हैं रिलीजियस एंडोमेंट एक्ट. वहीं आजादी के बाद उस कानून को खत्म करने के बयाय 29 और कानून बना दिए गए हैं, आज के समय में 30 कानून हो चुके हैं जो मठ और मंदिर को कंट्रोल कर रहे हैं. ये सेक्युलरिज्म नहीं है, आर्टिकल 26 में बहुत साफ-साफ लिखा हुआ है कि सभी धर्मों को अपने मठ, मंदिर और धार्मिक स्थानों को अपने तरीके से मैनेज करने का पूरा अधिकार है, उसमें केवल मुसलमानों को ही अधिकार नहीं मिला हुआ है, वो सबके लिए बना हुआ है।

उपाध्याय ने कहा कि हमारे देश में संविधान में जो अधिकार अल्पसंख्यकों को है वही बहुसंख्यकों को भी है. आर्टिकल 14 का मतलब सब समान है, आर्टिकल 15 का मतलब है कि भेदभाव नहीं होगा, और सबसे बड़ी बात कि संविधान में लिखा है कि जो टैक्स लिया जाएगा उसे लेते समय न तो धर्म देखा जाएगा और न ही उसे खर्च करते समय मज़हब देखा जाएगा. वहीं देश में इसका एकदम उल्टा हो रहा है. हिंदुओं के मंदिरों से उनका चढ़ावा लिया जा रहा है, धर्म के आधार पर टैक्स लिया जा रहा है, और मज़हब के आधार पर खर्च किया जा रहा है. संविधान की शपथ लेकर संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, इसी को हमने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है।

उन्होंने कहा कि हमने सभी 30 कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है, हमे पूरा विश्वास है कि कोर्ट इन सभी कानूनों को खत्म करेगा. कोई भी धार्मिक स्थल सरकार के कब्जे में नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार एक यूनिफॉर्म एंडोमेंट एक्ट बनाए जो मजार, दरगाह, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारा और मंदिर पर भी लागू हो, या तो सब सरकार के नियंत्रण में हो या कोई सरकार के नियंत्रण में न हो, ये भेदभाव बंद होना चाहिए।



No comments:

Post a Comment

Provisio of 223 of BNSS is Mandatory

Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 Section 223 and Negotiable Instruments Act, 1881 Section 138 - Complaint under Section 138 of NI Ac...