इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की एकल-न्यायाधीश पीठ ने एक रिट याचिका की अनुमति देते हुए टिप्पणी की है कि याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर प्रदान किए बिना आदेश पारित करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता सरोज राम जिला महराजगंज में तैनात हेड जेल वार्डर हैं। वह 12 दिसंबर 2020 के उस आदेश से व्यथित है जिसके अनुसार प्रतिवादी द्वारा उससे वसूली का आदेश इस आधार पर दिया गया है कि उसे एसीपी लाभ गलत तरीके से दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया है कि याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना उक्त आदेश पारित किया गया है।
कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि आक्षेपित आदेश में याचिकाकर्ता को प्रस्तावित कार्रवाई के खिलाफ कारण बताने का कोई अवसर नहीं दिया गया है। कोर्ट ने यह भी पाया कि आदेश के स्पष्ट रूप से गंभीर सामाजिक परिणाम होंगे और इसलिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना इसे पारित नहीं किया जा सकता था।
राज्य की ओर से वकील ने प्रस्तुत किया है कि न्याय के लिए याचिकाकर्ता को नोटिस करने के बाद प्रतिवादियों को आगे की कार्यवाही करने का अवसर दिए जाने के साथ आक्षेपित आदेश को अलग रखा जाएगा।
कोर्ट ने वर्तमान रिट याचिका की अनुमति देते हुए कहा है कि,
“याचिकाकर्ता से संबंधित 15 जून 2020 और 12 दिसंबर 2020 के आक्षेपित आदेशों को रद्द कर दिया जाता है। हालांकि, यह प्रतिवादी इस बात के लिये स्वतंत्र है कि वे विधि के अनुसार मामले में नए सिरे से आगे बढ़ें और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की आवश्यकता को ध्यान में रखे।"
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