आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत एक अपरिहार्य अधिकार मिलता है। कोर्ट ने इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रयागराज के आदेश को रद्द करते हुए याची की जमानत अर्जी को शर्तों के साथ स्वीकार करते हुए उसे रिहा करने का आदेश पारित किया। यह आदेश न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने अनवर अली की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में जांच के लिए अधिकतम अवधि (90 दिन) समाप्त होने के बाद और आरोपपत्र दाखिल करने से पहले आरोपी की ओर से दाखिल डिफाल्ट जमानत अर्जी को खारिज करना विधिक और मौलिक दोनों अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी डिफॉल्ट (चूक) जमानत अर्जी दाखिल करता है तो उसे सुनवाई से इनकार नहीं किया जा सकता है।
आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत एक अपरिहार्य अधिकार मिलता है। कोर्ट ने इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रयागराज के आदेश को रद्द करते हुए याची की जमानत अर्जी को शर्तों के साथ स्वीकार करते हुए उसे रिहा करने का आदेश पारित किया। यह आदेश न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने अनवर अली की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
याची के खिलाफ इलाहाबाद बैंक मैनेजर अनिल दोहरे से लूट और हत्या के आरोप में मऊआइमा थाने में 19 जुलाई 2021 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी। विवेचना केदौरान याची का नाम सामने आया था। उसने कोर्ट में समर्पण कर दिया, जिसके बाद से वह जेल में है। पुलिस 25 नवंबर 2021 को 90 दिन पूरे होने तक (न्यायिक रिमांड की पहली तारीख से) जांच रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर सकी। इस पर याची ने मजिस्ट्रेट के समक्ष 27 नवंबर 2021 को डिफाल्ट (चूक) जमानत अर्जी दाखिल की।
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