ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को खारिज कर दिया, लेकिन हाई कोर्ट ने अपील में इसकी इजाजत दे दी। हाई कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की अनुपस्थिति के कारण वादी को हुई असुविधा की क्षतिपूर्ति उचित लागत वहन करके की जा सकती है।
हाई कोर्ट द्वारा वाद को बहाल करने से व्यथित वादी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस इस रविंद्र भट्ट और जस्टिस उदय उमेश ललित की पीठ ने कहा कि संहिता के आदेश 5 नियम 9 के उपनियम 5 में अन्य बातों के साथ साथ कहा गया है कि अगर प्रतिवादी या उंसके एजेंट ने समन से जुड़ी हुई डाक की डिलीवरी लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया था, समन जारी करने वाला कोर्ट घोषित करेगा कि प्रतिवादी को समन विधिवत तामील किया गया था।
पीठ ने सामान्य खंड अधिनियम 1897 की धारा 27 का भी उल्लेख किया, जिसके अंतर्गत नोटिस तामील माना जाता है जब इसे पंजीकृत डाक द्वारा सही पते पर भेजा गया हो।
यह नोट किया गया है कि सीसी अलावी हाजी बनाम पलापेट्टी मुहम्मद एंव एआर एआईआर 2007 एससी सप्लीमेंट 1705 प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जब एक नोटिस पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाता है और अस्वीकार अथवा घर और उपलब्ध नही है या घर बंद या दुकान बंद या पताकर्ता मौजूद नही है जैसे डाक पृष्ठांकन के साथ वापस किया जाता है तो उसे उचित सेवा मान ली जानी चाहिए।
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