ये टिप्पणियां बेंच ने तब की थीं जब वह जनिवंतबाई वानखेड़े द्वारा एक आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनके बेटे की विधवा को उनकी सेवानिवृत्ति की बकाया राशि प्राप्त करने की इजाजत दी थी। उनका बेटा रेलवे में प्वॉइंटमैन का काम करता था।
बेटे की 1991 में एक दुर्घटना में मौत हो गई थी और उस समय वह अपनी पत्नी से अलग रह रहा था। एक महीने बाद पत्नी ने दूसरी शादी कर ली।
1993 में, मां ने बेटे की सेवानिवृत्ति बकाया राशि के लिए दावा दायर किया लेकिन रेलवे ने पत्नी को लाभ दिया। इस आदेश को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के समक्ष चुनौती दी गई, जिन्होंने फैसला सुनाया कि पत्नी और मां दोनों सेवानिवृत्ति लाभ के हकदार हैं।
मां ने इस आदेश को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी और दलील दी कि महिला ने पुनर्विवाह किया है, इसलिए वह लाभ की हकदार नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि चूंकि दुर्घटना होने पर महिला अभी भी मृतक से विवाहित थी, इसलिए वह सेवानिवृत्ति लाभों की हकदार थी।
चूंकि रेलवे ने पहले ही पत्नी को पूरी राशि का भुगतान कर दिया था, इसलिए उसे अपनी सास को 50% देने का आदेश दिया गया था।
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