Saturday, July 26, 2025

मतांतरण किए बिना किया गया विवाह अवैध- इलाहाबाद हाईकोर्ट


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि मतांतरण किए बिना विपरीत धर्म के जोड़ों की शादी अवैध है। कोर्ट ने गृह सचिव को निर्देश दिया कि विपरीत धर्म के नाबालिग जोड़े को शादी का प्रमाणपत्र देने वाली प्रदेश की आर्य समाज सोसाइटियों की डीसीपी स्तर के अधिकारियों से जांच कराएं। इस संबंध में अनुपालन रिपोर्ट मांगी गई है। प्रकरण में अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी। गृह सचिव से रिपोर्ट के साथ व्यक्तिगत हलफनामा भी मांगा गया है। 

यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की एकलपीठ ने सोनू उर्फ सहनूर की याचिका पर दिया है। याची के खिलाफ महराजगंज के निचलौल थाने में अपहरण, दुष्कर्म व पाक्सो एक्ट के आरोप में एफआइआर दर्ज है। पुलिस चार्जशीट पर संज्ञान लेकर ट्रायल कोर्ट ने समन जारी किया है। याची का कहना है कि उसने पीड़िता से आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली है और अब वह बालिग है  दोनों साथ रह रहे हैं इसलिए केस कार्रवाई रद की जाए। कोर्ट ने आपराधिक केस कार्रवाई रद करने से इन्कार करते हुए कहा कि आर्य समाज मंदिर में कानून का उल्लघंन कर नाबालिग लड़की का शादी प्रमाणपत्र जारी किया जा रहा है। सरकारी अधिवक्ता ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि दोनों विपरीत धर्म के हैं और बिना मतांतरण किए की गई शादी अवैध है। याची ने मतांतरण नहीं किया है और न ही शादी पंजीकृत कराई है। अदालत ने बिना धर्म बदले विपरीत धर्म के जोड़ों की शादी को वैध नहीं माना।

Sunday, July 20, 2025

Direction for early disposal

Criminal proceedings can be quashed by the High Court even for non-compoundable offences.


Criminal proceedings can be quashed by the High Court under Section 482 of CrPC, even for non-compoundable offences, if the dispute is personal in nature, does not affect public peace, and the parties have amicably settled their differences.

A. Criminal Procedure Code, 1973 Section 482 High Court's inherent powers Quashing of criminal proceedings for non-compoundable offences - Held, High Court can quash proceedings if offences are personal in nature, do not affect public peace, and compromise between parties secures ends of justice Further held, continuing such proceedings would be a waste of time and energy, especially where there is no likelihood of conviction.

B. Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 Sections 109(1), 115(2), 191(2), 351(3), 352 and 74 FIR quashed based on compromise between parties - Petitioners directed to pay Rs. 10,000/- each to Uttarakhand High Court Bar Association Advocates' Welfare Fund as deterrent for wasting public time and resources.

Saturday, July 19, 2025

संपत्ति सुरक्षा के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा एक सिविल उपचार-अधिवक्ता परिषद ब्रज का स्वाध्याय मंडल आयोजित

अधिवक्ता परिषद ब्रज जनपद इकाई सम्भल के स्वाध्याय मंडल की बैठक दिनांक 19/07/2025 एडवोकेट अजीत सिंह स्मृति भवन बार रूम सभागार चंदौसी में आयोजित की गई,  जिसमें जिला कार्यकारणी अधिवक्ता परिषद बृज का विस्तार करते हुए सचिन शर्मा को मंत्री नियुक्त किया गया साथ ही चंदौसी बार एसोसियशन  के वरिष्ठ उपाध्यक्ष  पद पर निर्विरोध चुने जाने पर विपिन कुमार सिंह राघव का पटका पहना कर स्वागत किया,  उसके बाद मुख्य वक्ता दीपक राठौर एडवोकेट ने सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आदेश 39 अस्थाई व्यादेश मामलों पर बताया कि किन परिस्थितियों में अस्थाई व्यादेश आदेश 39  के वाद न्यायालय में लाये जा सकते हैं आदेश 39, सिविल प्रक्रिया संहिता सीपीसी में अस्थायी निषेधाज्ञा और अंतरिम आदेशों से संबंधित है। इसका मुख्य उद्देश्य मुकदमे के लंबित रहने के दौरान संपत्ति को नुकसान या दुरुपयोग होने से बचाना है। यह आदेश न्यायालय को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि संपत्ति को नष्ट या स्थानांतरित न किया जाए, और यह सुनिश्चित करता है कि वादी को उसके अधिकारों से वंचित न किया जाए।
अस्थायी निषेधाज्ञा अदालत का आदेश है जो किसी पक्ष को किसी विशेष कार्य को करने से रोकता है, या किसी विशेष कार्य को करने के लिए बाध्य करता है, जब तक कि मुकदमे का निपटारा नहीं हो जाता। 

अंतरिम आदेश के ये आदेश मुकदमे के दौरान जारी किए जाते हैं ताकि संपत्ति की रक्षा की जा सके या वादी के अधिकारों को सुरक्षित किया जा सके। 
इसके अंतर्गत नियम 1 और 2  उन स्थितियों को बताते हैं  जिनमें अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की जा सकती है। 
नियम 2ए उन व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान करता है जो अदालत द्वारा जारी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हैं, जिसमें सिविल कारावास और संपत्ति की कुर्की शामिल हो सकती है। 
नियम 3 यह बताता है कि एकपक्षीय निषेधाज्ञा जारी होने पर विरोधी पक्ष को 24 घंटे के भीतर इसकी सूचना दी जानी चाहिए। 
नियम 4 यह बताता है कि निषेधाज्ञा आदेश को कब रद्द या परिवर्तित किया जा सकता है। 
संक्षेप में, आदेश 39 सीपीसी मुकदमे के दौरान संपत्ति की सुरक्षा और वादी के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। इस प्रकार, अस्थायी निषेधाज्ञा देने से पहले कुछ शर्तों को पूरा करना आवश्यक है जैसे कि प्रथम दृष्टया मामला वादी के पक्ष में और प्रतिवादी के खिलाफ है.
वादी को अपूरणीय क्षति होने की संभावना है, जिसकी भरपाई धन के रूप में नहीं की जा सकती है
सुविधा का संतुलन  वादी के पक्ष में है और प्रतिवादी के विरुद्ध है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजीव शर्मा तथा संचालन विकास कुमार मिश्रा ने किया। 
कार्यक्रम मे विष्णु शर्मा, राहुल चौधरी, प्रवीण गुप्ता, विभोर बंसल, रमेश सिंह राघव, चंद्र शेखर, शबाब आलम, कुणाल, शुभम प्रताप सिंह, रजनी शर्मा, अमरीश कुमार, राहुल रस्तौगी, श्यामेन्द्र सिंह, सचिन शर्मा, सुनील कुमार सिंह, अजय कुमार, मोक्षिका शर्मा, आशीष अग्रवाल, नरेश कुमार, विपिन कुमार सिंह राघव, यशपाल सिंह राणा, नवीन कोहली आदि अधिवक्ता उपस्थित रहे।

Friday, July 4, 2025

बीमा कंपनी अदा करे 5130000 रु - जिलाउपभोक्ता आयोग

बहजोई निवासी ममता देवी के पति ने एक्सिस बैंक से अपने व्यापार करने के लिए ऋण लिया था जिसकी सुरक्षा हेतु बैंक ने मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से उनकी एक जीवन बीमा पॉलिसी 51 लाख ₹30000 की जारी की ममता के पति की मृत्यु 27 अगस्त 2023 को घर परी हो गई थी बैंक अपने ऋण की वसूली के लिए परिवादिनी पर दबाव बनाया जाने लगा तब  परिवादिनी का कहना था कि मेरे पति की मृत्यु के उपरांत उनके बीमा पॉलिसी से भुगतान लेकर उनके खाते को बंद कर दिया जाए तथा जो सर धनराशि बचे वो मुझे वापस कर दिया जाए परंतु इंश्योरेंस कंपनी और बैंक ने उसकी कोई बात नहीं सुनी तो उन्होंने उपभोक्ता मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता लव मोहन वार्ष्णेय से संपर्क किया और अपनी सारी व्यथा बताई तो लव मोहन वार्ष्णेय एडवोकेट द्वारा ममता की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग में एक परिवाद प्रस्तुत किया गया जहां आयोग दोनों पक्षों को तलब किया बैंक की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ तो उनके विरुद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की गई तथा बीमा की कंपनी की ओर से उपस्थित होकर बीमा कंपनी ने आयोग को बताया की बीमा प्राप्त कर्ता स्वर्गीय कमल सिंह डायबिटीज टीवी आदि बीमारी से ग्रस्त थे जिस कारण उनकी पॉलिसी को शून्य घोषित किया गया है परंतु विपक्षी उनकी पूर्व बीमारियों को सिद्ध करने में असफल रही और उनकी ओर से लगाए गए इलाज के पर्चे भी सिद्ध नहीं कर पायी लव मोहन वार्ष्णेय एडवोकेट द्वारा आयोग को बताया गया कि बीमा कंपनी द्वारा बीमा धनराशि अदा करने से बचने के लिए झूठे व मनगढ़ंत पर्चा को दाखिल किया गया है जैसा कि अवलोकन से ज्ञात किया जा सकता हैं उन पर्चो पर न तो डॉक्टर का नाम अंकित है और न ही पूरे कॉलम रिपोर्ट के भरे हुए हैं।
आयोग दे दोनों पक्षों को सुना और अपना निर्णय देते हुए बीमा कंपनी मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आदेशित किया कि वह परिवादिनी ममता देवी को बीमा धनराशि मुबलिग 5130000,रु इक्यावन लाख तीस हजार रुपए उस पर परिवाद संस्थान की तिथि से 7% वार्षिक ब्याज सहित अंदर दो माह में अदा करें।
इसके अलावा विपक्षी परिवादी को मुबलिग 20000 बीस हजार रुपए मानसिक कस्ट एवं आर्थिक हानि के मद में तथा 5000रु पांच हजार रुपए वाद व्यय के मद में भी अदा करेगी।
नियत अवधि में धनराशि अदा न किए जाने की दशा में ब्याज 9% वार्षिक की दर से देय होगा।

Thursday, July 3, 2025

सम्भल हरिहर मंदिर विवाद में अगली सुनवाई 21 जुलाई को


संभल हरिहर मंदिर विवाद में बड़ी पक्ष के अधिवक्ता श्री गोपाल शर्मा द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांक 19 मार्च 2025 के आदेश की प्रति सिविल जज आदित्य कुमार सिंह के न्यायालय में प्रस्तुत की गई जिसका माध्यम से बताया गया कि हाईकोर्ट ने जामा मस्जिद कमेटी द्वारा योजित याचिका निरस्त कर दी गयी है जिसमे हाईकोर्ट ने दिनांक 19 नवम्बर 2024 को सिविल जज सीनियर डिवीजन सम्भल द्वारा दिए गए सर्वे कमीशन के आदेश को सही ठहराते हुए निचली अदालत में लगी सुनवाई पर लगी रोक हटा दी है।

ए एस आई और भारत सरकार के अधिवक्ता विष्णु कुमार शर्मा ने बताया कि प्रतिवादी संख्या 2, 3 व 4  की ओर से पूर्व में ही जबाब दावा प्रस्तुत किया जा चुका है और हाई कोर्ट से भी सुनवाई पर लगी रोक हटा दी गयी है। ऐसी स्तिथि में वाद की कार्यवाही प्रारंभ  हो जानी चाहिये। सिमरन गुप्ता द्वारा उपरोक्त वाद में पक्षकार बनाये जाने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। जिसकी प्रति वादी प्रतिवादी पक्षकार को उपलब्ध कराए जाने को न्यायालय ने कहा। अग्रिम कार्यवाही के न्यायालय द्वारा दिनांक 21/07/2025 नियत की गई है।

बीमित की मृत्यु के उपरान्त नवीनीकृत कराई गई लेप्स पॉलिसी का भुगतान नहीं किया जा सकता


रजपुरा जिला संभल निवासी मटरू ने आई. सी. आई. सी. आई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से अपने जीवन सुरक्षा हेतु  एक जीवन बीमा पॉलिसी ली थी। बीमित मटरू की मृत्यु दिनांक 12/01/2022 को हो गई जिसका क्लेम दावा परिवादिनी अमजदी पत्नी मटरू ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग सम्भल में अपने अधिवक्ता के माध्यम से योजित किया और बीमा कंपनी से 12% ब्याज सहित 804000 रुपए की धनराशि की मांग की।

बीमा कंपनी की ओर से अधिवक्ता ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि बीमित द्वारा बीमा पॉलिसी की किस्त अन्तिम रूप से दिनांक 25/10/2021 को अदा की गई थी और इसके उपरांत अगलु मासिक क़िस्त अगले माह 30/11/2021 को अदा की जानी थी जोकि अदा नहीं की गई। इसी दौरान दिनांक 12/01/2022 को बीमित व्यक्ति मटरू की मृत्यु हो गई और बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद ऑनलाइनल रिन्युवल प्रीमियम दिनांक 24/01/2022 को फर्जी रूप से नफ़ा  नाजायज़ कमाने के उद्देश्य से जमा किया गया जबकि ये प्रीमियम जमा किये जाने से पहले ही दिनांक 12/01/2022 को बीमित व्यक्ति मटरू की मृत्यु हो चुकी थी।दिनांक 30/11/2021 व 31/12/2021 को देय प्रीमियम जमा नहीं किया गया जिसके आधार पर आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया कि प्रश्नगत पॉलिसी बीमित व्यक्ति की मृत्यु के पूर्व दिनांक 30/11/2021 व 15 दिन के ग्रेस पीरियड सहित दिनांक 15/12/2021 को लेप्स हो चुकी थी ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि बीमा कंपनी द्वारा उपभोक्ता सेवा में कोई कमी अथवा अनुचित व्यापारिक व्यवहार कारित किया है उपरोक्त आधारों पर परिवादी का परिवाद निरस्त कर दिया गया।

Saturday, June 7, 2025

गवाहों को प्रभावित करने पर पूर्व मंत्री विनय कुलकर्णी की जमानत निरस्त


कर्नाटक में भाजपा कार्यकर्ता योगेश गौड़ा की हत्या के मामले में गवाहों को प्रभावित करने पर कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री विनय कुलकर्णी की जमानत सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रद कर दी। न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को जमानत की शर्तों के उल्लंघन के आधार पर जमानत रद करने के लिए याचिका स्वीकार करने का अधिकार है, भले ही जमानत सुप्रीम कोर्ट ने दी हो।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि रिकार्ड में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं जो दर्शाते हैं कि कुलकर्णी ने गवाहों से संपर्क करने या उन्हें प्रभावित करने का प्रयास किया गया था। इसलिए जमानत रद की जाती है। अदालत ने कुलकर्णी को शुक्रवार से एक सप्ताह के भीतर संबंधित ट्रायल कोर्ट या जेल प्राधिकरण के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश सीबीआइ के माध्यम से दायर की गई कर्नाटक राज्य की अपील पर दिया है। याचिका में बेंगलुरु के एक ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। इससे पहले सीबीआइ ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष कुलकर्णी सहित दो आरोपितों को दी गई जमानत रद करने के लिए याचिका दायर की थी। ट्रायल कोर्ट ने कुलकर्णी मामले में हस्तक्षेप करने से यह कहते हुए कि इन्कार कर दिया, उन्हें अगस्त 2021 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जमानत दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीबीआइ की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि आरोपित ने गवाहों से संपर्क करने और उन्हें प्रभावित करने का प्रयास किया। कुलकर्णी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि कुलकर्णी ने किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि इस आदेश में की गई टिप्पणियां अपीलकर्ता की उस याचिका तक सीमित हैं जिसमें प्रतिवादी को दी गई जमानत को रद करने की मांग की गई है। पीठ ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह सुप्रीम की टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिन सुनवाई शीघ्रता से पूरा करने का प्रयास करे। स्मरण रहे कि योगेश गौड़ा भाजपा के जिला पंचाय सदस्य थे। जून 2016 में धारवा जिले में उनकी हत्या कर दी गई थी। सितंबर 2019 में राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी थी।

मतांतरण किए बिना किया गया विवाह अवैध- इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि मतांतरण किए बिना विपरीत धर्म के जोड़ों की शादी अवैध है। कोर्ट ने गृह सचिव...